संवाददाता-बस्ती। भारतीय खान पान ही नही यज्ञ,हवन आदि में भी चावल का महत्वपूर्ण स्थान है। धान के बीज को चावल कहते है जो धान का छिलका उतारने के बाद मिलता है। प्राचीन काल सें ही धान से चावल निकालने के लिए घरो में ढेका,ओखली मूसल,से धान की कुटाई की जाती रही है।
जिसमें किसानो को लगभग 80 प्रतिशत से ज्यादा खड़ा चावल मिल जाता था और कुछ हिस्सा टूटे चावल (खुददी) के रूप मे मिलता था। धान कुटाई का यह जिम्मा ज्यादातर महिलाओ पर ही रहता था। इससे परिवार में जहां लोगो को बेहतर चावल मिल जाता था।
वही दूसरी ओर कुटाई करने के दौरान महिलाओ का व्यायाम भी हो जाया करता था। घरो में महिलाये खडे चावल का उपयोग भात बनाने मे करती थी तो उसके साथ ही टूटे हुए चावल का उपयोग विविध प्रकार के व्यंजन भी बनाती थी।
समय ने करवट बदली तो किसान भी आधुनिक मशीनो से घिर गया। धान की कुटाई के लिए डीजल एवं बिजली से चलने वाली मशीनो का उपयोग गांव गांव मे हाने लगा। किसानो ज्यादातर पिछले तीन दशको से धान कुटाई के लिए इन मशीनो पर निर्भर हो गया।इसके लिए उसे कुटाई कराने पर कुछ पैसा देना पडता था।
घरो सें ढेका,ओखली मूसल, अब केवल किसी विशेष आयोजन तक ही सिमट कर रह गये। तो वही घरो में बनने वाले चावल की मिठास कब हमसे दूर हो गई पता ही नही चला। धान कुटाई की इस प्रक्रिया ने जहां खान पान का स्वाद तो बिगाडा ही स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाला।
आधुनिकीकरण की दौड और तेज हुई तो धान कुटाई की मशीने ट्रैक्टर के साथ जुडकर घर घर पहुचने लगी। धान कुटाई करने वालो ने घर तक पहुचकर मुफ्त धान कुटने का काम शुरू कर दिया। लेकिन किसानो को इस मुफ्त की धान कुटाई से परोक्ष रूप भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इन मशीनो से कुटाई के बाद मिलने वाला चावल किसान के हिस्से में आता है जबकि टूटा चावल (खुद्दी) एवं भूसी के साथ ही राइस ब्रान कुटाई करने वाला व्यापारी ले जाता है।
धान की खेती करने वाले पूर्व प्रधान राम निवास ने इंजन से लगभग 33 किलो धान की कुटाई करायी।जिससे उन्हें लगभग 25 किलो चावल मिला। जबकि ट्रैक्टर से चलने वाली कुटाई मशीनों से लगभग 55 से 65 प्रतिशत से ज्यादा चावल नही मिलता है। गाँव गाँव चलने वाली यह मशीने अब चलते फिरते कुटीर उद्योग का रूप ले चुकी हैं। कुटाई के काम को करने वाले व्यापारी सरकार को टैक्स का एक पैसा भी नही देते हैं।
कुुुटाई मशीनों से होने वाली कमाई को लेकर एक व्यापारी से बात की तो बताया एक मशीन लगभग 15 से 20 क्विंटल धान की कुटाई करती हैं। जिसमे डेढ़ से 2 क्विंटल ब्रान राइस (खुद्दी) मिलती हैं ।जिसका बाजार मूल्य लगभग 15 रुपये किलो हैं।
ऐसी स्थिति में यदि व्यापारी को 200 दिन भी काम मिल जाये तो वह किसानों की गाढ़ी कमाई से लाखों कमाई कर रहे हैं। लाखों रुपये की बचत कर व्यापारी जहाँ किसानों को चूना लगा रहे हैं वही सरकार को भी टैक्स के नाम पर ठेंगा दिखा रहे हैं।