राजनीति का खेल कोई पास कोई फेल

 

महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए और दोनो में मतदाताओं ने नेताओं की कड़ी परीक्षा लिया। हरियाणा में अभी चार महीने पहले सम्पन्न् हुए लोकसभा चुनाव में सभी दस सीटें जीत कर परचम फहराया था लेकिन विधान सभा चुनाव में बहुमत के 46 का आकड़ा नही पार कर सकी और उसे सरकार बनाने के लिये ऐसा समझौता करना पड़ा कि उपमुख्यमंत्री पद भी देना पड़ा और उपमुख्यमंत्री के जेल काट रहे पिता को पैरोल पर छोड़ने की पैरबी करनी पड़ी तब जाकर किसी प्रकार सरकार बन पायी। महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा मिल कर चुनाव लड़े दोनो की नीतियों में भी हिन्दुत्व की एका है। 



मतदाताओं ने भजपा को 105 और शिवसेना को 54 सीटे देकर बहुमत तो दे दिया लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनो ऐसा लड़े कि राष्ट्रपति शासन की नौबत आ गयी और राजनीतिक घटनाक्रम ऐसा बदला कि भाजपा को राकापा सेमिल कर सरकार बनाना पड़ा और करोड़ों के वित्तीय घेटाले के आरोपर अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बना कर किसी प्रकार सरकार बनानी पड़ी। उधर कांग्रेस का भी अपनी नीति से लड़खड़ाई  कि उसके नेता शिवसेना के साथ मिल कर सरकार बनाने पर तैयार हो गये। पासा ना पल्टा होता तो महाराष्ट्र के लोग शिव सेना और कांग्रेस की मिली जुली सरकार को देख पाते ।
राजनीति में कौन कब किसके साथ जायेगा और कब किसका साथ छोड़ देगा कुछ पता नही। भारतीय जनता पार्टी के फडणवीस ने मुख्यमंत्री के रुप में शपथ तो ग्रहण कर लिया और एनसीपी के अजित पवार उप मुख्यमंत्री भी बन गये। शिवसेना ना इधर की रही ना उधर की राही।  भाजपा के साथ का तीस साल पुराना गठबंधन तब भी सत्ता की जोड़गांठ चढ गया जब कि दोनो की नीतियों में कमोबेश समानता तो थी ही । हिन्दुत्व के मुद्दे को लेकर ही सही। देश की राजनीति का अब कोई वैचारिक धरातल नही रहा। संख्याबल जुटाने के इस राजनीतिक नाटक को सदा याद किया जाता रहेगा कि शाम को किसी और के सिर पर बंधने वाला ताज किसी और के सिर पर बंध गया । यह सरकार कितने दिन चलेगी यह तो नही कहा जा सकता और उस पर कुद कहना भी जल्दबाजी ही होगी लेकिन 23 नवम्बर 2019 के इस राजनीतिक घटनाक्रम को समय-समय पर याद किया जायेगा और उदाहरण दिया जायेगा । 
महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले एक महीने से जारी शह और मात के खेल में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) मुखिया शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने शनिवार को बड़ा उलटफेर करते हुए अपनी पार्टी को ही तोड़ दिया। अजित पवार ने भाजपा  को समर्थन दे दिया और उप मुख्यमंत्री तो बन ही बैठे अपने वित्त्ीय घोटाले की जांच पर भी थोड़े समय के लिये ही सही रोक लगाने में कामयाब हो गये। छोटे पवार  के इस दांव से शरद पवार और उनका परिवार ही नहीं, राजनीतिक जानकार भी हैरान रह गए। परिवार और पार्टी की इस टूट पर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने कहा है कि जिंदगी में अब किसका भरोसा करें किसका ना करें। लेकिन यह संयोग ही है कि आज से ठीक 41 साल पहले 1978 में शरद पवार भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए अजित पवार वाली राह पर चले थे। उन्होंने तब अपनी पार्टी तोड़ी थी। उन्हें याद हो कि ना याद हो। महाराष्ट्र की  राजनीति में एकाएक बड़ा उलटफेर देखकर सब हैरान हैं, राजनैतिक पंडित भी भौंचक्के हैं। ये क्या हो गया ? रात तक  शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनती दिख रही थी और शिवसेना के उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने जा रहे थे और सुबह होते होते बाजी उलट गयी. भाजपा  के फडणवीस का मुख्यमंत्री के रुप में शपथ ग्रहण हो गया और एनसीपी के अजित पवार उप मुख्यमंत्री घोषित हो गए । भले ही शरद पवार कह रहे हैं कि इस घटनाक्रम में उनकी पार्टी एनसीपी शामिल नहीं हैं,लेकिन राजनीति की समझ रखने वाले इसे पवार और प्रधानमंत्री की मुलाकात से जोड़ कर देख रहे हैं। -